इंदौर. भारतीय महिलाओं के जुगाड़ का जवाब नहीं, पुराने कपड़े से पोछा बनाना, न्यूज़पेपर को अल्युमिनियम फॉयल की तरह इस्तेमाल करना और घर में आए किसी भी सामान के साथ अगर प्लास्टिक का डब्बा मुफ्त आए तो मजाल है कि उसमें दुनिया भर का साामान रखना। अब तो आलम यह हो गया है कि रेस्टोरेंट से मँगाए हुए खाने के साथ आए सफ़ेद प्लास्टिक के डब्बों का भी किचन में ढेर लगा होता है। क्या पता किस दिन किसी मेहमान को ट्रेन के सफर के लिए खाना देना पड़ जाए, बेहतरी इसी में है कि अपने बेशकीमती टपरवेयर के डब्बों की जगह इन्हीं प्लास्टिक के डब्बों में खाना दिया जाए।

बोर्नविटा का डब्बा हो या रिन सुप्रीम पाउडर का, हर खाली डब्बे में दाल, चावल, मसाला या कोई अचार ही मिलेगा। वृंदा माहेश्वरी भी एक आम गृहिणी की तरह प्लास्टिक के सभी डब्बों का भरपूर इस्तेमाल करती हैं। कल वृंदा के घर उनकी छोटी बहन शालिनी और उनके पति का परिवार आया था। रात को खाने के वक्त वृंदा ने आलू की सब्ज़ी और पूड़ी बनाई थी। पूड़ी देखकर शालिनी के पति ने कहा ”दीदी आम का अचार मिल जाता तो मज़ा आ जाता!” इस पर वृंदा ने शालिनी को किचन में जाकर आम का अचार लाने के लिए कहा।
जब शालिनी किचन में घुसी तो उसे उम्मीद थी कि बोर्नविटा के डब्बे में आम का अचार रखा होगा। शालिनी बिना देखे चुपचाप वो डब्बा उठा कर ले आई। डाइनिंग टेबल पर बैठे अपने पति की प्लेट में अचार डालने के लिए डब्बा खोला ही था तभी सबका ध्यान गया कि उसमें अचार की जगह बोर्नविटा पाउडर है। यह देखते ही शालिनी और उसके पति के परिवार के सभी लोग चौंक गए। इस पर जब वृंदा से सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि अचार बोर्नविटा के डब्बे में ही है पर ये नया डब्बा उनके बेटे के लिए लाया गया है, जब खाली हो जाएगा तो इसमें भी कोई मसाला या मिर्च का अचार डाल दिया जाएगा।